छिप-छिपकर

ऐसी छोटी बच्ची का अकेले सफ़र करना ठीक नहीं।


क्या तुमने भी कभी कोई काम इसी तरह छिपकर किया है? उसके बारे में लिखो।


हां जब मैं कक्षा सात में पढ़ता था तो एक बार घरवालों को बिना बताए अकेले स्कूल से फिल्म देखने चला गया था। घर से थियेटर काफी दूर था। शाम को फिल्म देखने के बाद जब अंधेरा हुआ तो मैं दिशा भटक गया था। उस वक्त मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मैंने लोगों से घर का रास्ता पूछने की काफी कोशिश की लेकिन किसी ने मेरी मदद नहीं की। देर रात तक मैं सड़कों पर आंख में आंसू लिए घूमता रहा। उधर घरवालों को मेरी चिंता सताए जा रही थी। आखिर में एक व्यक्ति ने मेरी सहायता की और मुझे सही सलामत घर तक पहुंचा दिया। घर पहुंचते ही मैं मां से लिपटकर खूब रोया और उन्हें कभी बिना बताए घर से न जाने का भरोसा दिलाया।


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